रविवार, 25 अगस्त 2013

राजनीति इधर भी

राजनीति इधर भी

कभी अकड़ती इतराती
भाव खाती कोई सब्जी
अचानक बेचारी हो जाती
जब दूसरी दो चार सब्जियाँ
लजाती लड़खड़ाती गिर पड़ती,
हम उसे थाम लेते 
बस जाती वो
हमारी आँखों में
संकटमोचन बन,
पर अब वो बात नहीं
इसके पहले कि 
उपयुक्त समय जान
कोई लजाये, लड़खड़ाये, गिर पड़े.
भाव खाती सब्जी
सबको सहारा दे 
उठाती है अपने साथ.
ऊपर से देखने में
अलग अलग दल
श्रेणियाँ हैं इनकी
अब अंदर सब एक हैं
सब्जी का राजा आलू
गृह मंत्री टमाटर
वित्त मंत्री प्याज
फलों के शहंशाह आम
करते हैं मंत्रणा
एक वातानुकूलित कक्ष में
और पल भर में ही
गरीबी रेखा पर 
झूलता मेरा संसार
मेरा चूल्हा, चौका
कुपोषण के शिकार
साग भाजी को 
तकते मेरे बर्तन    
आ जाते हैं 
गरीबी रेखा के ऊपर
जानना चाहती हूँ
साग भाजी में राजनीति है
या राजनीति में साग भाजी
या हर साँस हर आस में राजनीति. 

रविवार, 11 अगस्त 2013

दस्तक

दस्तक 

 रोती बिलखती हर गली मोहल्ले में,
सांकल अपना पुराना घर ढूंढती है.

सजी थी कभी मांग में जिसकी,
वो चौखट वो दीवार ओ दर ढूंढती है.

डाले बांहों में बांहे, किवाड़े किवडियाँ,
आज भी अपना वो घर ढूंढती हैं.

जहाँ छत ओ मुंडेरें थी सखी सहेली, 
आंगन पनाले वाला घर ढूंढती हैं.

छोटे ओ गहरे घरों की लंबी कतारे,
अपना पुराना शहर ढूंढती हैं.

थकी हारी टूटी हुई दस्तक, 
खुले दरों वाला घर, शहर ढूंढती है.
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