रविवार, 29 जनवरी 2012

और भी गम हैं ज़माने में ....

और भी गम हैं ज़माने में ....


बिना अंकों के गणित और पंचांग के 
नक्षत्रों की चाल और राशियां  
लग चुकी है ढाई महीने की ढहिया,
हो चूका है शुरू नगद नारायण उत्सव,
खिंची है बीचों बीच एक स्पष्ट रेखा,
एक ओर हैं आम जनता 
तो दूसरी ओर है एक विशिष्ट समुदाय 
बढ़ने वाला है जनता का मान, सम्मान, धन धान्य
बीमार को मिलेगी बिन मांगे दवा, तीमार को दारु 
हर तरफ बस जश्न ही जश्न.
कुछ दिन का तूफ़ान फिर सब कुछ शांत. 
न जाने फिर कब लगेगी ढहिया 
पर जनता की साढ़े-साती तय है.
आम जनता पुलिस के खोजी कुत्तों की तरह नाकाम 
सूंघती फिरेगी विशिष्ट समुदाय का पता 
वहीँ बंद कमरों में 
पिछली ढहिया में हुए नुकसान की भरपाई की जुगत 
में होगा विशिष्ट समुदाय.

रविवार, 22 जनवरी 2012

बाज़ार

बाज़ार 






आज इतवार की सुबह 

जाग उठी हूँ 
रेहड़ी वालों के अजीब शोर से 
सालों से अदृश्य आत्माहीन शरीर 
आज अचानक दृश्यमान हुए हैं 
अलग तरह की रेहडियां
अलग सामान
कहीं समाजवाद,कहीं लोकतंत्र 
कहीं धर्मनिरपेक्षता, कहीं केवल धर्म 
बदले बदले स्वर 
कहाँ जाऊं, क्या लाऊं ?
जहाँ सब सस्ता है ? 

या जहाँ सब अच्छा है

जहाँ गुणवत्ता है 

या जहाँ महत्ता है     

या जहाँ मिले पांच साल की गारंटी व वारंटी.. 
पर यहाँ तो ये ही खुद असमंजस में है 
ये ही नहीं जानते
कब हाथ मसल दिया जायेगा 
कब कमल कुम्हला जायेगा 
कब हाथी हताश हो हांफता बैठ जायेगा
या फिर ....
कब ये सुकोमल हाथ 
अपनेपन से, दुलार से 
तोड़ेगा कमल  
संजोयेगा हाथी की सूंड में इसे प्यार से 
और अर्पित करेगा 
माँ लक्ष्मी के चरणों में 
कौन जाने ......

रविवार, 15 जनवरी 2012

आरम्भ


आरम्भ


सुना है
सदियों, सदियों, सदियों पहले
धरा पर कुछ था
तो था 
विस्फोट, आग, धुआं
तपिश और जलन.      
कहते हैं 
शायद वही आरंभ था 
जीवन का.
आज भी 
धरा पर कुछ है तो 
विस्फोट, आग, धुआं, 
तपिश और जलन 
कहीं ये फिर आरम्भ तो नहीं 
किसी अंत का ?     
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