रविवार, 23 मई 2010

शांति पथ

शांति पथ





बाहर हर तरफ हैं

गर्म हवा के बबंडर,

चक्रवात, तपिश, तूफ़ान

और सब कुछ मुरझाया,

सूखा उजड़ा सा.

जमीं पर पड़े सूखे बेदम,

जरा सी हवा में

घसिटते, लड़खड़ाते पत्ते.

आँधियों में

गिरे टूटे कुछ फल,

उनको ले जाने को

व्याकुल लोग.

फिर भी मैं  खुश हूँ.

भीतर नमी जो है.

ये नमी कभी मुझे

तरावट का अहसास देती है.

कभी नम सी हरारत.

कभी अपनी ही नमी में,

अपना आँचल भिगो,

साफ़ करती हूँ,

धुंधले आइने को.

खोजती हूँ कुछ

धुंधली होती तस्वीरों को.

कभी एकांत में जा,

अपनी ही नमी में नहा

शांत होती हूँ.

निखरती हूँ,

सवंरती हूँ

और साहस बटोरती हूँ.

फिर से उस

गर्म हवा के

बबंडर,

चक्रवात,

 तपिश 

और तूफ़ान

को सहने का.




30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना ! इंसान यदि अपने अंदर की उर्जा को इस्तमाल करना सीख जाये तो बड़े से बड़ा तूफ़ान का सामना कर सकता है ...

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  2. Hi..

    Bahar ki duniya ki peeda, dard, tapish andhad si hai..
    Aur jo man ka saar tatv hai..
    nami wo antarman ki hai..

    Man ki shakti se jeevan ki, kathinayi haara kartin..
    Aur tapish, tufan, aandhi sab,
    door sabhi bhaga kartin..

    Sundar avam Bhavpurn kavita..

    DEEPAK..

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत अभिव्यक्ति.....मन की शक्ति ही सबसे लडने और सहने की ताकत देती है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. यही "प्रेरणा" जीवन का सार है जो जीने का जज्बा कायम रखती है और उसे सार्थक बनाती है

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  5. वाह!

    ...फिर भी मैं खुश हूँ.
    भीतर नमी जो है.
    ..उर्जा का संचार करती सुंदर कविता के लिए बधाई.

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  6. bahut hi sundar rachna.....
    jeevan ke kayi ehsaason ko samete huye....
    umdaah rachna.....
    yun hi likhti rahein..
    meri nayi kavita ko aapki pratikriya ka intzaar hai.......

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  7. आपकी ये रचना चर्चा मंच पर ली है....

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

    जवाब देंहटाएं
  8. शांति पथ

    [Image]


    बाहर हर तरफ हैं
    गर्म हवा के बबंडर,
    चक्रवात, तपिश, तूफ़ान
    और सब कुछ मुरझाया,
    सूखा उजड़ा सा.
    जमीं पर पड़े सूखे बेदम,
    जरा सी हवा में
    घसिटते, लड़खड़ाते पत्ते.
    आँधियों में
    गिरे टूटे कुछ फल,
    उनको ले जाने को
    wakai ek sarahniye yogya rachna hai .bahut sundar .

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर, प्रेरणादायी रचना. तूफ़ानों से लड़ने का हौसला देती सी.

    जवाब देंहटाएं
  10. अपनी ऊर्जा की तरफ ध्यान दिलाती एक सुन्दर कविता पेश किया आपने.

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  11. kya baat hai ..ek halki si nami kya kya kar rahi hai ... behad achhi lagi yah rachna

    जवाब देंहटाएं
  12. साहस बटोरती हूँ.
    फिर से उस
    गर्म हवा के
    बबंडर,
    चक्रवात,
    तपिश
    और तूफ़ान
    को सहने का.

    aap ke bas m hai ye ......bahut se bebas to ye bhi nahi kar pate

    जवाब देंहटाएं
  13. कभी अपनी ही नमी में,
    अपना आँचल भिगो,
    साफ़ करती हूँ,
    धुंधले आइने को.
    खोजती हूँ कुछ
    धुंधली होती तस्वीरों को.
    जिन्दगी को जीने का हौसला देती रचना... बढ़िया और नए बिम्ब... अपनी नमी में अंचल को भिगोना... बधुत उम्दा बिम्ब बना है... फिर अंचल से आईने को पोछना... बहुत सुंदर... भाव बिभोर कर रही है रचना ...

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  14. हिम्मत और हौसले के पाक जज़्बे से भरी
    एक अनूठी रचना
    इंसान को जूझने के ताक़त
    अन्दर से ही मिल पाती है ..
    ये पैगाम अपनी इस नज़्म में साफ़ दिख रहा है

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  15. बहुत सुन्दर ।
    जीवन की समस्याओं से जूझने की ताकत अन्दर ही होती है । इस शक्ति को बहुत खूबसूरत तरीके से पेस किया है आपने ।

    जवाब देंहटाएं
  16. 'बाहर हर तरफ हैं


    गर्म हवा के बबंडर,


    चक्रवात, तपिश, तूफ़ान


    और सब कुछ मुरझाया,


    सूखा उजड़ा सा.


    जमीं पर पड़े सूखे बेदम,


    जरा सी हवा में


    घसिटते, लड़खड़ाते पत्ते.


    आँधियों में


    गिरे टूटे कुछ फल,

    उनको ले जाने को



    व्याकुल लोग.

    फिर भी मैं खुश हूँ.
    - यह खुशी ही जीवन है. लेकिन ध्यान रहे भीतर की नमी कमजोरी न बन जाए.
    '

    जवाब देंहटाएं
  17. आस का दीपक आँधियों में भी जलते रहना चाहिये.....हिम्मत न हारते हुए इंसान को जीवन में आये हर तूफ़ान के खिलाफ लड़ने का जज़्बा बनाये रखना चाहिये ,,,कुछ ऐसा ही संदेस देती बहुत अच्छी प्रेरक कविता.

    जवाब देंहटाएं
  18. फिर भी मैं खुश हूँ.
    भीतर नमी जो है.
    ये नमी कभी मुझे
    तरावट का अहसास देती है.
    कभी नम सी हरारत.
    कभी अपनी ही नमी में,
    अपना आँचल भिगो,
    साफ़ करती हूँ,
    धुंधले आइने को.
    खोजती हूँ कुछ
    धुंधली होती तस्वीरों को.
    कभी एकांत में जा,
    अपनी ही नमी में नहा
    शांत होती हूँ.
    निखरती हूँ,
    सवंरती हूँ
    और साहस बटोरती हूँ.


    बेहद साफ और सुथरे ख्याल,
    इन पंक्तियों को पढ़कर आशा का नया चेहरा दिखाई देता है।
    अनुकरणीय रचना।

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  19. बहुत सुन्दर
    हमको मन की शक्ति दे ,मन विजय करे
    इस प्रार्थना को सार्थक करती सुन्दर रचना |

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  20. हर इंसान में ऐसी उर्ज़ा होती है ... स्वयं उठने , सामना करने की .. अच्छी रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  21. दिल को छू गयी ! बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  22. और साहस बटोरती हूँ.
    फिर से उस
    गर्म हवा के
    बबंडर,
    चक्रवात,
    तपिश
    और तूफ़ान
    को सहने का.
    और शायद यही ज़िन्दगी है
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  23. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

    जवाब देंहटाएं
  24. maaf kijiyega ...
    lekin actlly mushkil yeh hai ki mere blog ka feed rss kaam nahi kar raha isliye batana padta hai ki meri nayi kavita maine post kar di hai.....
    baat ko anyatha na lein....

    जवाब देंहटाएं
  25. कभी अपनी ही नमी में,

    अपना आँचल भिगो,

    साफ़ करती हूँ,

    धुंधले आइने को....

    लाजवाब ......!!

    जवाब देंहटाएं

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