रविवार, 30 अक्तूबर 2022

कुछ तो

कुछ तो 


सोचती हूं 

खोल दूं बचपन की कॉपियां और निकाल दूं 

सब कुछ जो छुपाती रही 

समय और समय की नजाकत के डर से 

निकालूँ वह इंद्रधनुष और निहारूं उसे 

जो निकलता था 

मेरे बचपन की बारिशों में 

तब जब मैं बनाती थी पापा के लिए भांग के पकौड़े 

मां के न होने पर या होते हुए भी न होने पर 

निकालूं नानी की दी वो नन्ही बिंदिया 

उन्हें छू कर महसूस करूं, सजा लूं माथे पर 

जो पाबंदियों के कारण कभी सज न सकीं 

निकालूं नेल पॉलिश लगाने को मेरी नन्ही उंगलियां 

जो मचलती रही पूरे बचपन रंग भरने को  

रंग दूं उन्हें तितलियों के रंग में और तितली हो जाऊं

निकालूं बचपन की अधूरी नींदें 

सो जाऊं कहीं दुबक कर 

जो कभी मेरे हिस्से न आयी  

तब जब बनाती थी पापा के लिए खाना 

कहीं उन्हें देर ना हो जाए 

निकालूं चढ़ी त्योरियों के डर से 

दबी छुपी वह हंसी वो खिलखिलाहट 

हंसूं दिखाऊँ दसों दिशाओं को 

कि मैं भी हंस सकती हूं 

निकालूं वो पलक पांवड़े 

बिछा दूं मात्र अपने लिए 

जो बिछाए सदा मैंने सबके लिए 

निकालूं बचपन में लिखी कविताएं मेरी 

जहां छुपे हैं कुछ दर्द और पीड़ाएं मेरी  

जो तूफान की आशंकाओं के कारण 

कभी बाहर में ना आ सके 

निकालूं वह मसोसा मन 

वह रूपसी नवयौवना सी स्वचित्रित अपनी ही तस्वीर 

तब जब सखी सहेलियां व्यस्त थीं यौवन की खुमारीं में 

और मैं घर के कामों में 

निकालूं वह क्लास के लड़कों की बातें 

जो रखी थी छुपा कर 

मौका देख कर पड़ोस वाली भाभी से कहने को 

हाथ हैं कि थक गए हैं पन्ने पलटते पलटते  

पर नहीं तैयार है  

पन्नों में कैद बचपन लड़कपन खत्म होने को 

सोचती हूं आजाद कर दूं 

अपनी कॉपियों में बंद 

उस बचपन और तमाम तितलियों को 

उड़ लेने दूं

जी लेने दूं उन्हें भी खुली हवा में 

आखिरकार उन्हें भी हक है 

अब आजाद होने का 

एक आकाश होने का


शनिवार, 6 अगस्त 2022

अमावस

 अमावस

 

यूँ कुछ दिनों से मेरे भीतर

बहुत कुछ बदल रहा था

घट रहा था बढ़ रहा था

यूँ पूरा एक चाँद

घटता,बढ़ता लड़ता रहा

आज अचानक यूँ लगा

अमावस का पूरा एक चाँद

मेरे भीतर पिघल रहा हो

मेरी अमावस में घुल रहा हो

भीतर एक तन्हा

आसमान मचलने लगा

सघन मौन पीड़ा को 

स्वर देने लगा

मन की प्रस्तर सतहें

टूटने लगीं चटखने लगीं

दरारों में चाँद उतरने लगा

वेदना की ज्योति के गले

लगने लगा 

मिलने लगा

आकाश न पाने की पीड़ा 

अनुभव करने लगा

एक निगाह

चेहरे पर गिर कर 

टूट कर बिखरने लगी

जख्मों के पैबन्दों के 

टांके टूटने लगे

मैं अंजुरी में तड़प भरने लगी

सन्नाटे के 

छंद और चौपाइयां 

फुसफुसाने लगे

चाँद के अनगिनत 

टुकड़ों को समेटने लगी

एक सुरक्षित एकांत भरने लगी

सोचने लगी

ये तो फिर भी अमावस का चाँद है

कभी तो उबर लेता होगा

मैं तो पूरी की पूरी

अलिखित, अपठित, अमिट

अमावस हूँ

रविवार, 31 जुलाई 2022

रुसवाई

रुसवाई 

 


ईरानी गलीचे पर फैलता इश्क 

गाव तकिये पर अपने आप को सहारा देते 

गिर गिर पड़ते शेर 

अपनी सरहदों को छोड़ हारमोनियम पर 

सर टिकाये 

काफ़िया - रदीफ़ 

तबले के भीतर चुपचाप पड़ी 

सहमी सी थापें 

आँखों से टपकते अशआर

कागज़ के सलीब पर टंगी 

कुछ बेजुबान नज्में 

बाँहों में मातम सी पसरने को बेताब 

अनगिनत, अनकही गज़लें मेरी 

होंठों की मुंडेरों पर ख़राशों से तराशे हुए 

इरशाद और मुक़र्रर से 

चंद अल्फाज़ 

भरे गले की सरहद पर 

फंदे से झूलती मौसिकी 

बंद कमरे की चारदीवारों के बीच 

मचलती बेबस हुस्न की रुसवाई 

ये और कुछ भी नहीं 

तुम्हारी न के जवाब में 

मेरी बेपनाह मुहब्बत की रुसवाई की हद है

बुधवार, 20 जुलाई 2022

भगवान शिव के 12 ज्‍योतिर्लिंग

 भगवान शिव के 12 ज्‍योतिर्लिंग

देश भर में शिवरात्रि पर भक्तिमय माहौल बना हुआ है। सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्‍तों का तांता लगा है। भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाकर श्रद्धालु उन्‍हें प्रसन्‍न करने में जुटे हैं, ताकि बाबा भोले की कृपा उन पर बनी रही। ज्‍योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए रात से ही शिवभक्‍त लाइन में लगे हैं। हर ज्‍योतिर्लिंग के बाहर श्रद्धालुओं की कतार लगी है। पुराणों के अनुसार जहां-जहां ज्‍योतिर्लिंग हैं, उन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। बाबा भोले की विशेष कृपा बनी रहती है। आइये महाशिवरात्रि के मौके पर आपको द्वादश ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन कराते हैं।

देश भर में शिवरात्रि पर भक्तिमय माहौल बना हुआ है। सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्‍तों का तांता लगा है। भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाकर श्रद्धालु उन्‍हें प्रसन्‍न करने में जुटे हैं, ताकि बाबा भोले की कृपा उन पर बनी रही। ज्‍योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए रात से ही शिवभक्‍त लाइन में लगे हैं। हर ज्‍योतिर्लिंग के बाहर श्रद्धालुओं की कतार लगी है। पुराणों के अनुसार जहां-जहां ज्‍योतिर्लिंग हैं, उन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। बाबा भोले की विशेष कृपा बनी रहती है। आइये महाशिवरात्रि के मौके पर आपको द्वादश ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन कराते हैं।

भारत धार्मिक मान्यताओं और पवित्र मंदिरों से बसा देश है, जहां लोग ईश्वर की आराधना करते हैं। यहां कई सारे प्राचीन और पवित्र मंदिर हैं, इनमें भगवान भोलेनाथ के मंदिरों की महिला ही अपार है। कई भक्त हर साल भगवान शिव के इन मंदिरों, शिवालयों में हर साल लाखों की संख्या में जाते हैं। इन्हीं पवित्र शिवालयों में भोलेनाथ के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भी हैं। इन ज्योतिर्लिंगों का महत्व सबसे अधिक है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में  भगवान शिव ज्योति के रूप में स्वयं विराजमान हैं। ये सभी ज्योतिर्लिंग भारत के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं। इन ज्योतिर्लिंगों के अगर आप दर्शन करना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों का क्या नाम है और ये कहां स्थित है। सबसे ज्यादा ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में स्थित हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात)

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर देवताओं द्वारा बनवाया गया एक पवित्र कुंड भी है, जिसे सोमकुण्ड या पापनाशक-तीर्थ कहते हैं।





मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (आंध्र प्रदेश)

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित  है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश)

मध्य प्रदेश स्थित के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन होने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश)

मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में शिव का यह पावन धाम स्थित है। इंदौर शहर के पास जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ॐ का आकार बनता है। 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तराखंड)

केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र)

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। 

बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तर प्रदेश)

बाबा विश्वनाथ का यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजधानी माने जाने वाली वाराणसी शहर में स्थित है। 

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र)

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। 

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (झारखंड)

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड प्रांत के संथाल परगना में जसीडीह रेलवे स्टेशन के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में शिव के इस पावन धाम को चिताभूमि कहा गया है। 

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (गुजरात)

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। द्वारका पुरी से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। 

रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग (तमिलनाडु)

भगवान शिव का यह ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान में स्थित है। रामेश्वरतीर्थ को ही सेतुबंध तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान श्री राम द्वारा स्थापित किए जाने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र)

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है।


(सभी चित्र गूगल से साभार )

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

समुद्र मंथन



रात

जब मस्तिष्क

अपने आतंरिक कक्ष में

प्रवेश कर रहा था

सुरमई जुगनू

अंधेरों को रौशन कर रहे थे 

खामोशी अंधेरों को पी रही थी

अंधेरों के कतरे बिखर रहे थे

सांसों का बाज़ार नर्म था

कुछ आयातित कुछ अपहृत सांसें

बेसुकून से उनींदी सी

हर करवट पर कराह रही थीं

इक समुद्र मंथन होने लगा

चेतन, अवचेतन, अतिचेतन सांसें

पूरी गरिमा के साथ धरने पर बैठ गयीं

विस्मृतियों की धूल धुंधलाने लगी

सांसें किसी का एकाधिकार न होने की

विडम्बना से मचलने लगीं

चौदह घड़ी, चौदह पल, चौदह विपल

बीत गए

एक धनवंतरी की तलाश में

पर हाय

सांसों के हाथ आया हलाहल

मस्तिष्क के आंतरिक कक्ष की देहलीज़ पर

ठिठक कर ठहर गया

एक आघात, एक पक्षाघात

और हृदयाघात की आहट 

और हो गया 

सांसों का अवसान 

गुरुवार, 23 जून 2022

अथ श्री बुलडोज़र कथा

चेतावनी: इस पोस्ट में योगी जी का न तो हाथ है न ही दिमाग इसलिए कृपया MYogiAdityanath योगी जी जैसे अनुभवहीन को इससे जोड़ कर न देखा जाए।

🤭🤪
समय के साथ सोच, शब्द, भावनायें और उनकी परिणति ही नहीं बदली बल्कि तेजी से बदलते समय, मशीनीकरण और मानसिकता से प्रेम भी अछूता नहीं रहा है। अभी तक शब्दों और भावनाओं का मानवीयकरण हो रहा था पर आज यहां शब्दों, भावनाओं और मुहावरों का मानवीयकरण न होकर मशीनीकरण होगा। आज के घोर मशीनीकरण और घनघोर टीवीकरण के कर्कश, कर्णकटु स्वर 🥺 🥺 के प्रदूषण से उपजी एक अनोखी, अनहोनी सी प्रेम कथा प्रस्तुत है यहां।
जैसे हर प्रेम कहानी में होता है, "प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है कभी दोनों हंसते हैं कभी दोनों रोते हैं" 🎊 । पर मशीनीकरण के युग में आप कहेंगे कि जरूरी तो नहीं कि "एक लड़का हो और एक लड़की ही हो" 🧑‍🤝‍🧑, 👭,पर यकीन मानिए मेरी इस प्रेम कहानी में निश्चित रूप में एक लड़का है और एक लड़की है 👫 । अब देखें कि एक सामान्य प्रेमी युगल के जीवन में "प्रेम की परिणति" से पहले क्या क्या पायदान आते हैं। उनकी सोच, संवेदनाएं, भावनाएं कैसे व्यक्त होती हैं मेरे अंदाज में औए मशीनीकरण के प्रभाव में⚙️
तो होता यूं है कि एक प्रेमी युगल जो बहुत समय से अथाह व अगाथ प्रेम में एक दूसरे से मिल रहे थे, एक दिन प्रेमिका बीमार होने पर भी प्रेमी के विशेष अनुरोध पर उससे मिलने पहुंची तो पहुंचने पर होता क्या है? होता कुछ नहीं है बस तूफानी मशीनीकरण!👀 🛠️⚒️






प्रेमिका चलते चलते थक जाती है, पैरों में सूजन आ जाती है। वह एक जगह बैठ जाती है, पैरों के दर्द के बारे में सोच कर उसे लगता है जैसे किसी ने उसके "पैरों में बुल्डोजर बांध दिए है" ("पैरों में पत्थर बांध दिए है")। प्रेमिका बहुत देर तक प्रेमी की राह देखती है और उसके ना आने पर जब दिल आशंकित हो जाता है, तब उसे ऐसा लगता है जैसे उसके "कलेजे पर बुल्डोजर लोट गया हो" ("कलेजे पर सांप लोट गया हो") फिर भी "दिल पर बुल्डोजर रख कर" ("दिल पर पत्थर रख कर") वो प्रतीक्षा करती है। काफी इंतजार करने के बाद प्रेमी आता है। पर प्रेमिका व्यथित है 😔😌उसे खुश करने के लिए प्रेमी कह उठता है कि जब जब तुम मुस्कुराती हो "हंसती हो तो बुल्डोजर झड़ते हैं" (हंसती हो तो फूल झड़ते हैं") फिर क्या था प्रेमिका खिलखिला पड़ती है😁😁 और प्रेमी से कहती है कि आज घर जाकर मैं सबको अपने प्रेम के बारे में बता दूंगी। घर पहुंच कर वो अपने घर वालों को अपने प्रेम प्रसंग के बारे में बताती है तो शुरू हो जाता है उलाहनों का दौर🥺, कि तुम्हें "छाती पर बुलडोजर दलने के लिए" 🥺("छाती पर मूंग दलने के लिए") पैदा किया था। तुम्हारी "अकल पर बुल्डोजर पड़े हैं" 🥺("अकल पर पत्थर पड़े हैं")। शादी क्या "बुल्डोजर का खेल है" ("बच्चों का खेल है")। या तुमने एक "बुल्डोजर की लकीर खींच दी है"😵‍💫 ("पत्थर की लकीर खींच दी है") और यदि हां, तो हम भी "ईट का जवाब बुल्डोजर से" देंगे🙆 ("ईट का जवाब पत्थर से देंगे") और "तुम्हें छठी का बुलडोजर याद दिला देंगे 🥺 ("तुम्हें छठी का दूध") और अगर किसी भी तरह से घर वालों का "पत्थर का दिल बुल्डोजर हो गया" (जी कड़ा कर लिया)🤐 तो गए काम से और यही कहीं "बुल्डोजर का दिल मोम हो गया" ("पत्थर का दिल मोम") 🤗और वो मान गए और रिश्ता ब्याह तक पहुंचा तो आजकल जैसे कार्ड छपते हैं📒। हर समारोह की अलग व्याख्या और कपड़ों का रंग। जैसे हल्दी के लिए पीला पर पीला भी कैसा "बुल्डोजरी पीला"🏷️। फिर बाजार से दो दिन में ही पीला रंग "बुल्डोजरी पीले" के नाम पर गायब हो जायेगा। अब तो आप समझ ही गए होंगे की बुलडोजर और पीला एक दूसरे के पर्याय हैं, तो हाथ पीला करने को लिखेंगे की अमुक तारीख को अमुक दिन मेरी बेटी के "हाथ बुलडोजरी किए जायेंगे"।
अब आगे आप को सोचना है कि उन हाथों से कब कब, कैसे कैसे, किसकी किसकी बखिया उधेड़ी जायेगी।
पर मेरी बखिया उधेड़ने का प्रयास हरगिज न करें क्योंकि मेरा नाम है
रचना दीक्षित बुलडोजरी📝📝
"अपना काम मैने दिया है कर, बाकी बचा करेगा बुलडोजर"

रविवार, 12 मई 2019

टंगी खामोशी

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा नमस्कार.आज बहुत समय बाद ब्लॉग पर कुछ लिख रही हूँ .आप लोगों से अपनी ख़ुशी साझा करना चाहती हूँ .मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई है उसके बारे में आप लोगों को अवगत कराना था 




ये किताब मेरी कविताओं का एक पुलिंदा नहीं, ये आइना है, जिसके सामने मैं अपने आप को रोज़ खड़ा पाती हूँ | देखती हूँ दवे पाँव सरकता समय, आईने को निगलती खामोशी, कभी सैलाब में बहती खामोशी, कभी सलीब पर टंगी खामोशी, कभी आँगन में बिखरी खामोशी | बस यही सब भूला, बिसरा, छूटा, छिटका, ठिठका सहेजने की कोशिश मात्र है ये संकलन | 

कुछ कहूं न कहू की जद्दोजहद फिर चाहें वो खुशबु की तरह छूमंतर होता बचपन हो, स्कूल कॉलेज को जाती वो सड़कें हों, आगन में फूटती हंसी और उसके पीछे सहमे हुए चंद सवाल, दुआ के लिए उठे माँ के हाथ हो या माँ के खूबसूरत चेहरे पर चढ़ता पर्त्-दर-पर्त दर्द का मुल्लमा, आँखों को स्याह कर देने वाली समाज की कालिख हो या बचपन को ख्वावों में ढूढने का अनर्थक प्रयास |

रिश्ते खून के, हूँ प्यार के, दोस्ती के, समाज के जिस भी रिश्ते को ताउम्र पकड़ कर, जकड कर रखना चाहा सूखी सूनी रेत की तरह भरभराकर कर गिरते रहे | नहीं जानती रिश्तों की नीव कमजोर थी या मेरी उन पर पकड़ जरूरत से ज्यादा सख्त | जानती हूँ कुछ भी नया नहीं हूँ, सभी के साथ होता है ये सब पर सब के अनुभव अलग अलग है, उनकी छाप अलग अलग है | मन के किस हिस्से में कितना प्रभाव शब्दों के माध्यम से उतरता है औरो का तो पता नहीं पर मेरे अन्त:स्थल के एक एक तंतु ने महसूस किया है इसे |

मेरी कविताओं में कहीं विचार उद्वेलन तो कहीं भावों की तीव्रता मिलेगी, कहीं बेचैनी, आकांक्षाएँ और चिंताएं इनके केंद्र में हैं | मेरी कवितायेँ ख़ामोशी और शब्दों के बीच का सेतु है | मेरी खामोशी से जन्मे शब्द मुझे मुंह न खोलने को मजबूर करते रहे और रचनाएं रचती गयीं |

यूँ तो मैं कुछ बोलती नहीं
पर कलम को बोलना आ गया
यूँ तो मैं जुबान खोलती नहीं
पर आँखों को खोलना आगया
लोगों को कभी तोलती नहीं
पर शब्दों को तोलना आ गया
अपनी गांठे कभी खोलती नहीं
पर यूँ लगता है अब खोलना आ गया

आप यह किताब अमेज़न, फ्लिपकार्ट, शॉप क्लूज और ब्लुरोज  पब्लिशर की वेबसाइट से ऑनलाइन खरीद सकते हैं | 
Book is available on following websites 

आपसे अनुरोध है कि पुस्तक पढने के उपरांत अपनी बहुमूल्य टिप्पणी, प्रतिक्रिया और समीक्षा अवश्य दें| इसके लिए आप email - rachanadixit@gmail.com द्वारा अथवा मेरे ब्लॉग पर डाल सकते हैं |


रविवार, 15 नवंबर 2015

अच्छे दिन

अच्छे दिन
 

खुश हूँ अच्छे दिन आए हैं 
सदियों से झुग्गी बस्तियों में बसने वाले 
सडान बदबू में रहने वाले 
नाले नालिओं में पनपने वाले
अब नहीं रहते हैं वहां.
बदल गया है बसेरा 
आयें है अच्छे दिन 
रहते हैं साफ़ सुथरी हवा में
अति विशिष्ट व्यक्तियों के घरों में
दीदार करते हैं 
अभिनेता अभिनेत्रियों का
छू पाते है उनका शरीर
उठना बैठना है 
उच्चवर्गीय समाज में
अच्छे दिन आए हैं
सफर तय हो चला है
मच्छरों का 
मलेरिया से डेंगू तक.
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